तमस (उपन्यास) : भीष्म साहनी
"वहाँ नज़दीक ही खुदाई हो रही थी। बहुत से बुत मिले हैं। क्यूरेटर ने एक बुत मुझे भेंट किया है।"
लीज़ा की आँखों के सामने बँगले का बड़ा कमरा घूम गया जिसमें रिचर्ड ने तरह-तरह के बुत और भारतीय लोक-कला के नमूने सजा रखे थे, और अलमारियों में किताबें ठसाठस भरी थीं। यही धुन इसे कीनिया में भी सवार रहती थी। वहाँ अफ्रीका की लोक-कला के नमूने भरता रहता था, तरह-तरह के तीर-कमान, मणके, पक्षियों के पर, टोटम। और यहाँ बुत इकट्ठे करता रहता है।
लीज़ा का ध्यान फिर आसपास के दृश्य की ओर गया। बाईं ओर नीचे छोटे-छोटे पेड़ों का घना जंगल था, उसी के अन्दर से घोड़े चलाते हुए वे टीले के ऊपर आए थे। जंगल में से निकलकर टीले के ऊपर जाने पर दृश्य खुल गया था। दाईं ओर छोटे-छोटे टीले थे और उनके आगे मैदान था जो फैलकर दूर धुंधलके में खो गया था।
“यहाँ की मिट्टी कैसी है, लाल-लाल रंग की?" लीज़ा टीलों की ओर देखती हुई बुदबुदाई। फिर रिचर्ड की ओर मुड़कर बोली, “सड़क कहाँ है? या क्या हम फिर से जंगल के रास्ते ही लौटकर जाएँगे?" फिर मज़ाक़ के-से स्वर में बोली, “वह सड़क तो दिखाओ जिस पर से अलेक्सांडर हिन्दुस्तान आया था।"
“उन दिनों पक्की सड़कें नहीं थीं, लीज़ा। लेकिन एक पुरानी सड़कलगभग चार सौ साल पुरानी-उस टीले के पीछे से होकर चली गई है।"
लीज़ा ने रिचर्ड की ओर देखा। मोटे फ्रेम के चश्मे के नीचे रिचर्ड के चेहरे का निचला हिस्सा बड़ा नाजूक-सा लगता था। लीज़ा का मन हुआ रिचर्ड उस इलाके के पत्थरों-खंडहरों की चर्चा छोड़कर उसके साथ लाड़-प्यार की बातें करे। पर रिचर्ड अपनी लहर में बोले जा रहा था।
“इस इलाके के लोग भी बहुत पुराने ज़माने से सैकड़ों बरसों से यहाँ बसे हुए हैं।" फिर लीज़ा की ओर घूमकर बोला, “क्या यहाँ के लोगों को तुमने ध्यान से देखा है? एक ही नस्ल के लोग हैं। नाक-नक्श सबके एक-जैसे हैं, एक तरह की नाक, होंठ, चौड़ा माथा, ब्राउन रंग की आँखें यहाँ के लोगों की आँखें ब्राउन रंग की हैं-तुमने ध्यान दिया, लीज़ा?"
“एक ही नस्ल के कैसे हो सकते हैं रिचर्ड, जबकि तुम कहते हो कि इस रास्ते से तरह-तरह के लोग आते रहे हैं?"
“नहीं, नहीं, लीज़ा यही बात तो लोग भूल जाते हैं।" रिचर्ड की आवाज़ में उत्तेजना आ गई थी, मानो वह अपनी किसी खोज को प्रमाणित करने जा रहा हो। “जो लोग मध्य-एशिया से सबसे पहले यहाँ आए, शताब्दियों के बाद उन्हीं के नाती-पोते अन्य देशों से इधर आए। नस्ल सबकी एक ही थी। वे लोग जो आर्य कहलाते थे और हज़ार वर्ष पहले यहाँ पर आए, और वे भी जो मुसलमान कहलाते थे और लगभग एक हजार वर्ष पहले यहाँ पर आएएक ही नस्ल के लोग थे। सभी एक ही मूल जाति के लोग थे।"
“इन बातों को ये लोग भी जानते होंगे?"
“यहाँ के लोग कुछ नहीं जानते। ये वही कुछ जानते हैं जो हम इन्हें बताते हैं।" फिर थोड़ी देर तक मौन रहकर बोला, "ये लोग अपने इतिहास को जानते नहीं हैं, ये केवल उसे जीते-भर हैं।"
लीज़ा ऊबने लगी थी। रिचर्ड पर कोई धुन सवार हो जाए तो वह सब-कुछ भूल जाता था। जितना अधिक वह अपनी धुन में खोता जाता उतना ही अधिक लीज़ा पीछे धकेल दी जाती थी। अपनी किताबों में खोया हुआ रिचर्ड या तो डिप्टी कमिश्नर था या फिर इतिहास का खोजी। लीज़ा को वह बहुत चाहता था लेकिन लीज़ा के लिए उसके पास समय नहीं था। घर में अलमारी के सामने खड़े-खड़े किसी किताब के पन्ने पलटने लगता तो उसी में डूब जाता। इसी कारण लीज़ा जब ऊबने लगती तो उसकी ऊब का कोई ठिकाना नहीं होता था, हर चीज़ काटने को दौड़ती थी, नेटिव लोग ज़हर-से लगने लगते और अन्त में या तो वह 'नरवस ब्रेक-डाउन' का शिकार हो जाती या फिर छः महीने, साल के लिए विलायत लौट जाती थी।
“यहाँ पर कोई पिकनिक-स्पॉट भी है?" लीज़ा ने रिचर्ड की बात काटते हुए पूछा।
रिचर्ड को धक्का-सा लगा, पर यह सवाल भी उसके लिए बहुत असंगत नहीं था।